Seeker of Truth

सम्मानके लिये

१- यदि चाहते हो कि अच्छे लोग तुमसे घृणा न करें, तुम्हारा आदर करें तो शिष्टाचारके नियमोंका सावधानीसे पालन करो।

२-सदा सबका सम्मान करो, किसीका कभी अपमान या तिरस्कार न करो, सबसे मीठी वाणी बोलो। किसीको ताना मत मारो, उसकी आलोचना न करो। अपनेसे उम्र, पद या अधिकारमें जो छोटे हों, उनके साथ व्यवहार करनेमें उनके सम्मानका विशेष खयाल रखो।

३-सदा सत्य बोलो। झूठ बोलनेवालेका लोग विश्वास नहीं करते और उसका तिरस्कार होता है।

४-कोई बात बिना समझे मत बोलो। जब तुम्हें किसी बातकी सचाईका पूरा पता हो, तभी उसे कहो ।

५-अपनी बातके पक्के रहो। जिसे जो वचन दो, उसे पूरा करो। जिसे जब मिलनेको कहो या जो काम जब करनेको कहो, उसे उसी समय करो, उसमें विलम्ब मत करो।

६-व्यवहारमें स्पष्ट रहो। जो काम तुमसे नहीं हो सकता, उसे करनेका वचन मत दो। नम्रतापूर्वक अस्वीकार कर दो।

७- प्रत्येक काम पूरी सावधानीसे करो। किसी कामको छोटा समझकर उसकी उपेक्षा मत करो।

८-प्रत्येक काम ठीक समयपर करो। एक कामके समय उसे टालकर दूसरे काममें मत लगो। पढ़नेके समय पढ़ो, खेलनेके समय खेलो, काम करनेके समय काम करो। नियत समयपर काम करनेका स्वभाव हो जानेपर कठिन काम भी सरल बन जायँगे।

९-दूसरोंमें जो अच्छी बातें हों, उन्हें सीखो; किंतु किसीके दोषका अनुकरण मत करो और न किसीकी निन्दा करो।

१०-उत्तेजना और क्रोधको वशमें रखो। जब तुम्हें क्रोध आवे या तुम किसी बातपर उत्तेजित हो उठो, तब उस समय बोलना बंद कर दो। एकान्तमें दस मिनट बैठो और एक गिलास शीतल जल पीओ । जब चित्त शान्त हो जाय, तब विचारपूर्वक काम करो।

११-पढ़नेमें मन लगाओ। विद्याप्राप्तिके लिये पूरा यत्न करो। जो कुछ ज्ञानार्जन कर लोगे, वही जीवनमें सफलता तथा सम्मान देगा। ऐसा कोई काम मत करो जो अध्ययनमें बाधा दे। केवल परीक्षामें उत्तीर्ण होनेके लिये मत पढ़ो। ज्ञानकी वृद्धिके लिये पूरी पढ़ाई करो।

१२-उत्तम ग्रन्थोंका (रामायण, गीता, भागवत आदिका) नियमित रूपसे नित्य पाठ करो और उत्तम ग्रन्थोंका यथाशक्य स्वाध्याय करो।

१३-मिलने-जुलने, खेल-कूद तथा मन- बहलावके दूसरे कामोंमें दिनके दो घंटेसे अधिक समय मत लगाओ। पढ़नेमें पूरा समय दो और केवल रटो मत। जो कुछ पढ़ो, उसे समझनेकी चेष्टा करो।

१४-जो तुमसे श्रेष्ठ हैं, उनसे पूछनेमें संकोच मत करो।

१५- बातचीत करना भी एक कला है। व्यर्थकी बातें मत करो। दूसरोंको क्या सुनना पसंद होगा, उनकी उत्सुकता किसमें है, यह समझकर बोलना चाहिये। दूसरोंकी बात धैर्यसे सुननी चाहिये। अपनी ही बात कहते रहनेवालेसे लोग ऊब जाते हैं।

१६-धर्म, देवता, संयम, शास्त्र और सदाचारका सम्मान करो। इनकी हँसी मत उड़ाओ ।

१७-नम्र, विनयी और शान्त रहो । उद्धत, उच्छृंखल और चंचल मत बनो। सबके साथ प्रेमका बर्ताव करो, सत्यभाषण करो और जहाँतक अपनेसे बने, दूसरोंके हितके लिये प्रयत्न करो। अपना स्वार्थ छोड़कर दूसरेकी भलाई करना ही उत्तम आदर्श है।ডে

१८-तुम जैसे लोगोंके साथ उठो-बैठोगे, खेलोगे, घूमो-फिरोगे, लोग तुम्हें भी वैसा ही समझेंगे। इसलिये बुरे लोगोंका साथ सर्वथा छोड़ दो। अच्छे लोगोंके साथ ही रहो। जो लोग बुरे कहे जाते हैं, तुम्हें उनमें दोष न भी दीखे, तब भी उनका साथ मत करो।

१९-शौकीनी तथा फैशनके वस्त्र, तीव्र सुगन्धके तेल या सेंटका उपयोग करनेवालों और सदा सजे-बजे रहनेवालोंको अच्छे लोग 'आवारा' समझते हैं। तुम्हें अपना रहन-सहन, वेश-भूषा सादगीसे युक्त रखना चाहिये। सिनेमाकी अभिनेत्री तथा अभिनेताओंके चित्र छपे हुए अथवा उनके नामके वस्त्रोंको कभी मत पहनो। इससे बुरे संस्कारोंसे बचोगे।

२०-अपने छोटे भाई-बहिनोंसे प्रेम करो। उनकी भूलोंको क्षमा करो। वे तुम्हारा कुछ बिगाड़ भी दें तो उनपर क्रोध मत करो। अपने मित्रोंसे भी ऐसा ही व्यवहार करो।

२१-अनेक बार तुम्हारे माता-पिता तुम्हारी माँग, जो तुम्हें उचित जान पड़ती है, पूरी नहीं करते। वे अनेक बार तुम्हें जोरसे डाँटते या दण्ड देते हैं। ऐसे अवसरोंपर भी तुम्हें शान्त रहना चाहिये। किसी वस्तुके लिये हठ नहीं करना चाहिये। तुम्हारे माता-पिता सम्भव है परिस्थितिवश तुम्हारी माँग पूरी न कर पाते हों। तुम्हें डाँटने या दण्ड देनेमें उनका पूरा सद्भाव है। जब उन्हें अपनी भूलका पता लगेगा तब वे तुम्हारा बहुत आदर करेंगे और तुमसे उनका प्रेम अधिक बढ़ जायगा । तुम उनकी बातका बुरा मत मानो और न उनको उलटकर उत्तर दो।

कभी 'शेखी' मत मारो। अपने मुख अपनी प्रशंसा करना तुच्छताका चिह्न है।

- स्रोत : स्वास्थ्य, सम्मान और सुख (गीता प्रेस, गोरखपुर द्वारा प्रकाशित)